चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में होसुर तहसील के थोरापल्ली गांव में हुआ था हुआ था. वह एक भारतीय राजनेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लेखक और वकील भी थे. राजगोपालाचारी भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे भारत के अंतिम गवर्नर जनरल का पद 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद समाप्त कर दिया गया था. इसके अलावा वह एकमात्र भारतीय गवर्नर जनरल भी थे.
राजगोपालाचारी को “मैंगो का सलेम” नामक का उपनाम भी दिया गया था, वह भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न के पहले प्राप्तकर्ताओं में से एक थे. वह एक गांधीवादी विचारधारा के शांतिप्रिय नेता थे और विश्व शांति और निःशस्त्रीकरण के समर्थक थे.
C. Rajgopalachari की शिक्षा व राजनीति
C. Rajgopalachari की शिक्षा सेंट्रल कॉलेज बेंगलुरु और प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में हुई थी उन्होंने 1900 के दशक में सालेम अदालत में वकालत शुरू की और इसके बाद राजनीति में प्रवेश किया और नगर पालिका के सदस्य और अध्यक्ष भी बने. इसके बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और महात्मा गांधी से जुड़े उन्होंने रॉलेट एक्ट, असहयोग आंदोलन, वायकम सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया. 1930 में राजगोपालाचारी ने दांडी मार्च के समय नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया और कारावास गए. 1937 में उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी का प्रधानमंत्री भी चुना गया, 1940 में उन्होंने ब्रिटेन द्वारा जर्मनी पर युद्ध की घोषणा के कारण इस्तीफा दे दिया.
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी साहित्य में भी काफी रुचि रखते थे, और वह एक कुशल लेखक भी थे. उन्होंने भारतीय अंग्रेजी साहित्य में बहुत योगदान दिया है और कर्नाटक संगीत पर आधारित कुरई पुनराम इलाई गीत की रचना भी उन्होंने की है. इसके अलावा राजगोपालाचारी ने भारत में दलित उत्थान की हमेशा से वकालत की और उन्हें मंदिर में प्रवेश के लिए किए जाने वाले आंदोलन का भी समर्थन किया. C.R महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के चहेते व्यक्तियों में से एक रहे थे, गांधी जी ने उन्हें “मेरी अंतरात्मा का रक्षक” बताया था.
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1946 में राजगोपालाचारी को भारत की अंतरिम सरकार में उद्योग, आपूर्ति, शिक्षा और वित्त मंत्री नियुक्त किया गया इसके बाद वे 1947 से 1948 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे. 1948 से 1950 तक भारत के गवर्नर जनरल और इसके बाद 1951 से 1952 तक केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी सेवाए दी. उसके बाद 1952 से 1974 तक वे मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
वर्ष 1959 में राजगोपालाचारी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अपनी खुद की पार्टी स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की, जिसने 1962, 1967, और 1971 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा, राजगोपालाचारी ने सी. एम. अन्नादुरई के नेतृत्व में मद्रास में एक संयुक्त कांग्रेस विरोधी मोर्चा स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1967 के चुनाव में जीत भी हासिल की. उनका निधन 25 दिसंबर 1972 को 94 वर्ष की आयु में हो गया.