Miyawaki method of Plantation: बदलते समय के साथ धरती में पेड़ों की कटाई से क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण प्रदुषण जैसी नई समस्याए खड़ी हो गयी है. धरती पर वनों का कम होना एक बड़े खतरे का संदेश देता है. पिछले कुछ दशकों से वनों की मात्र में भरी कमी हुई है, जिसे नियंत्रित करने के लिए विश्व भर में विभिन्न प्रकार के प्रयास किये जा रहे है और उन्नत तकनीके और विधियां अपनाई जा रही है जिससे पर्यावरण प्रदुषण और जलवायु परिवर्तन से निपटा जा सके.
हाल ही में भारत ने अपने हरित क्षेत्र को 25 से 35% तक बढ़ाने के लिए पेरिस समझौते के तहत मियावाकी विधि को अपनाने का वादा किया था.
छत्तीसगढ़ के कोयला बेल्ट क्षेत्र में वन आवरण को बढ़ावा देने के लिए, कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) अपने परिचालन क्षेत्रों में पहली बार मियावाकी पद्धति का उपयोग करके वृक्षारोपण करेगी। कंपनी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एसईसीएल के गेवरा क्षेत्र में दो हेक्टेयर क्षेत्र में मियावाकी जंगल विकसित करने के लिए लोकप्रिय जापानी तकनीक का उपयोग करेगी। यह प्रोजेक्ट लगभग 4 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम (CGRVVN) के साथ साझेदारी में लागू की जाएगी।
मियावाकी तकनीक का उपयोग करके वृक्षारोपण दो वर्षों की अवधि में किया जाएगा जिसमें लगभग 20,000 पौधे लगाए जाएंगे। वृक्षारोपण में बड़े पौधे जैसे बरगद, पीपल, आम, जामुन आदि, मध्यम पौधे जैसे करंज, आंवला, अशोक आदि और छोटे पौधे जैसे कनेर, गुड़हल, त्रिकोमा, बेर, अंजीर, निम्बू आदि शामिल होंगे।
आईए जानते हैं मियावाकी विधि क्या है जिससे हम पेड़ों की संख्या कम समय में बढ़ा सकते हैं.
What is Miyawaki method: क्या है मियावाकी तकनीकी
वृक्षारोपण की मियावाकी पद्धति की शुरुआत 70 के दशक में जापानी वनस्पतिशास्त्री और पादप पारिस्थितिकी विशेषज्ञ श्री अकीरा मियावाकी ने की थी। वृक्षारोपण की इस तकनीक में प्रत्येक वर्ग मीटर के भीतर देशी पेड़, झाड़ियाँ और ग्राउंडकवर पौधे लगाना शामिल है। यह विधि भूमि के छोटे टुकड़ों के लिए उत्तम है और इससे ऊंचे पेड़ों की घनी छतरी परत बनाती है।
मियावाकी वृक्षारोपण के लिए चुनी गई प्रजातियाँ आम तौर पर ऐसे पौधों की होती हैं जिन्हें बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है और वे कठोर मौसम और पानी की कमी की स्थिति में जीवित रह सकते हैं और मौजूदा परिस्थितियों में तेजी से बढ़ सकते हैं और हरे आवरण की मोटी परत पैदा कर सकते हैं।
Miyawaki method steps: मियावाकी विधि के माध्यम से वृक्षारोपण
इस विधि के लिए छोटी भूमि (कम से कम 20 वर्ग) की आवश्यकता होती है. इसमें पौधों को घना उगाया जाता है और पौधों के बीच की दूरी कम होती है. इससे पेड़ों को एक दूसरे से रक्षा करने और सूरज की रोशनी को जंगल की जमीन पर गिरने से रोकने में मदद मिलती है जिससे जमीन में अन्य परजीवी पौधों की वृद्धि को रोका जा सकता है.
इस प्रक्रिया में पौधों का विकास 10 गुना तेजी से होता हैं और वनस्पति सामान्य से 30 गुना घनी होती हैं तथा लगाये गए पौधों की कम से कम 3 वर्ष तक देखभाल की जाती हैं.
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इसमें आधुनिक तकनीक में पहले चरण में मिट्टी के स्वभाव और उसमें मौजूद खनिज तत्वों की जांच की जाती है ताकि अनुकूल पौधे लगाए जा सके इसके पश्चात दूसरे चरण में मिट्टी के अनुकूल पौधों की प्रजातियों को चुना जाता है. तीसरे चरण में उस वन भूमि को तैयार किया जाता है जहां पर हमें मियावाकी पद्धति से जंगल उगाने हैं. चौथे चरण में वृक्षारोपण कार्यक्रम किया जाता है उसके पश्चात पांचवें चरण में अगले 3 साल तक उसे नए जंगल का रखरखाव और देखभाल किया जाता है.
इस तरह से मियावाकी विधि से दो से तीन वर्षों के भीतर एक अच्छा और पर्यावरण के अनुकूल जंगल उगाया जा सकता है जबकि पारंपरिक प्रक्रिया में लगभग 100 वर्ष लगते हैं.